कैलाश पर्वत: एक पवित्र और रहस्यमयी शिखर

कैलाश पर्वत: एक पवित्र और रहस्यमयी शिखर

कैलाश पर्वत, जिसे तिब्बती भाषा में “कांग रिनपोछे” (Kang Rinpoche) कहा जाता है, हिमालय पर्वत श्रृंखला में स्थित एक ऐसा शिखर है जो न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि विभिन्न धर्मों के लिए एक पवित्र तीर्थ स्थल के रूप में भी पूजनीय है। यह पर्वत तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र, चीन में स्थित है और इसे हिंदू, बौद्ध, जैन और बोन धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस लेख में हम कैलाश पर्वत की स्थिति, इतिहास, भूगोल, चढ़ाई के प्रयासों, धार्मिक मान्यताओं और पर्यटन के पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

स्थिति

कैलाश पर्वत पश्चिमी तिब्बत के नगारी प्रांत में स्थित है। यह हिमालय की कैलाश श्रृंखला का हिस्सा है और समुद्र तल से इसकी ऊंचाई लगभग 6,638 मीटर (21,778 फीट) है। यह पर्वत चार प्रमुख नदियों—सिंधु, ब्रह्मपुत्र, सतलज और करनाली (जो आगे चलकर घाघरा नदी बनती है)—के उद्गम स्थल के निकट स्थित है। इसका निकटतम प्रमुख शहर दारचेन (Darchen) है, जो तीर्थयात्रियों के लिए आधार शिविर के रूप में कार्य करता है। कैलाश पर्वत मानसरोवर झील से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जो स्वयं में एक पवित्र जलाशय माना जाता है। यह क्षेत्र दुर्गम और ऊंचाई पर होने के कारण प्राकृतिक रूप से अलग-थलग है, जिससे इसकी रहस्यमयी और आध्यात्मिक छवि और बढ़ जाती है।कैलाश तक पहुंचने के लिए तीर्थयात्री और पर्यटक आमतौर पर नेपाल के रास्ते या चीन के ल्हासा शहर से यात्रा करते हैं। यह क्षेत्र भारत, नेपाल और चीन की सीमाओं के निकट होने के कारण भू-राजनीतिक रूप से भी संवेदनशील माना जाता है।

इतिहास

कैलाश पर्वत का इतिहास प्राचीन काल से विभिन्न धर्मों और सभ्यताओं के साथ जुड़ा हुआ है। हिंदू धर्म में इसे भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है, जबकि बौद्ध इसे बुद्ध डेमचोक (Demchok) का प्रतीक मानते हैं। जैन धर्म में यह वह स्थान है जहां उनके पहले तीर्थंकर ऋषभनाथ ने निर्वाण प्राप्त किया था। बोन धर्म, जो तिब्बत का एक प्राचीन स्वदेशी धर्म है, इसे अपने आध्यात्मिक केंद्र के रूप में देखता है।ऐतिहासिक दस्तावेजों में कैलाश का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों जैसे पुराणों, रामायण और महाभारत में मिलता है। स्कंद पुराण में इसे “कैलाश मानसरोवर” के रूप में वर्णित किया गया है, जहां शिव और पार्वती निवास करते हैं। तिब्बती बौद्ध ग्रंथों में इसे “स्वस्तिक पर्वत” कहा गया है, जो इसके चार दिशाओं में फैले ढलानों के कारण है। प्राचीन काल में यह क्षेत्र व्यापार मार्गों का हिस्सा भी रहा, जो मध्य एशिया को भारत से जोड़ता था।19वीं और 20वीं सदी में यूरोपीय खोजकर्ताओं ने भी इस क्षेत्र की यात्रा की और इसके बारे में लिखा। स्वीडिश खोजकर्ता स्वेन हेडिन ने 1907 में इस क्षेत्र का दौरा किया था, लेकिन वह कैलाश पर चढ़ने का प्रयास नहीं कर सके। इसके बाद भी कई इतिहासकारों और यात्रियों ने इसकी रहस्यमयी प्रकृति और धार्मिक महत्व को उजागर करने की कोशिश की।

भूगोल

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कैलाश पर्वत का भूगोल इसे एक अनूठा और आकर्षक स्थल बनाता है। यह एक पिरामिड के आकार का पर्वत है, जिसके चारों ओर खड़ी चट्टानें और बर्फ से ढके ढलान हैं। इसकी चार दिशाओं में चार अलग-अलग रूप दिखाई देते हैं, जो इसे स्वस्तिक के समान बनाते हैं। पर्वत की ऊंचाई 6,638 मीटर होने के बावजूद यह हिमालय की सबसे ऊंची चोटियों जैसे माउंट एवरेस्ट (8,848 मीटर) से कम है, लेकिन इसकी अलग संरचना और एकांत स्थिति इसे विशिष्ट बनाती है।कैलाश के आसपास का क्षेत्र ठंडा और शुष्क है। यहां का तापमान सर्दियों में -20 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है, जबकि गर्मियों में भी यह 10-15 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं होता। यह क्षेत्र तिब्बती पठार का हिस्सा है, जो दुनिया का सबसे ऊंचा पठार है। कैलाश के पास मानसरोवर झील (4,590 मीटर) और राक्षस ताल (4,575 मीटर) दो प्रमुख जलाशय हैं, जो इस क्षेत्र की भौगोलिक विविधता को बढ़ाते हैं। मानसरोवर को मीठे पानी की झील माना जाता है, जबकि राक्षस ताल खारा है।पर्वत की संरचना ग्रेनाइट और अन्य चट्टानों से बनी है, और इसकी सतह पर प्राकृतिक रूप से बने कई चिह्न और आकृतियां दिखाई देती हैं, जिन्हें तीर्थयात्री धार्मिक प्रतीकों के रूप में देखते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, यह क्षेत्र भूगर्भीय गतिविधियों का परिणाम है, जो लाखों साल पहले हिमालय के निर्माण के दौरान हुआ था।

चढ़ने के प्रयास

कैलाश पर्वत की चढ़ाई को लेकर एक अनोखी बात यह है कि इसे धार्मिक कारणों से कभी भी पूरी तरह से नहीं चढ़ा गया है। हिंदू और बौद्ध मान्यताओं के अनुसार, कैलाश पर चढ़ना ईश्वर के निवास स्थान का अपमान माना जाता है। इसलिए, तीर्थयात्री इसके चारों ओर परिक्रमा (Kora) करते हैं, जो लगभग 52 किलोमीटर लंबी होती है और 5,600 मीटर की ऊंचाई तक जाती है। यह परिक्रमा अपने आप में एक कठिन यात्रा है, जो 2-3 दिनों में पूरी होती है।हालांकि, कुछ पर्वतारोहियों ने कैलाश पर चढ़ने की योजना बनाई, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। 20वीं सदी में ब्रिटिश पर्वतारोही ह्यूग रटलेज और अन्य ने इसकी चढ़ाई की संभावना तलाशी, लेकिन धार्मिक संवेदनशीलता और स्थानीय विरोध के कारण यह संभव नहीं हुआ। 2001 में, एक स्पेनिश पर्वतारोही टीम को चीन सरकार से अनुमति मिली थी, लेकिन अंतरराष्ट्रीय धार्मिक संगठनों के विरोध के बाद यह प्रयास रद्द कर दिया गया।वैज्ञानिकों का मानना है कि कैलाश की चढ़ाई तकनीकी रूप से संभव है, लेकिन इसकी खड़ी चट्टानें, ठंडा मौसम और ऑक्सीजन की कमी इसे बेहद कठिन बनाती है। फिर भी, इसकी पवित्रता के कारण इसे अछूता छोड़ दिया गया है, जो इसे अन्य पर्वतों से अलग करता है।

धार्मिक मान्यताएं

कैलाश पर्वत का धार्मिक महत्व इसे विश्व के सबसे पवित्र स्थानों में से एक बनाता है। हिंदू धर्म में इसे भगवान शिव का निवास माना जाता है, जहां वे ध्यान में लीन रहते हैं। मान्यता है कि कैलाश की परिक्रमा करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। स्कंद पुराण और अन्य ग्रंथों में इसे “विश्व का केंद्र” कहा गया है।बौद्ध धर्म में कैलाश को “मेरु पर्वत” का प्रतीक माना जाता है, जो ब्रह्मांड का केंद्रीय बिंदु है। तिब्बती बौद्ध इसे बुद्ध डेमचोक का स्थान मानते हैं, जो क्रोध और प्रज्ञा के प्रतीक हैं। जैन धर्म में यह वह स्थान है जहां ऋषभनाथ ने निर्वाण प्राप्त किया, और इसे “अष्टपद” कहा जाता है। बोन धर्म में कैलाश को नौ मंजिला स्वस्तिक पर्वत माना जाता है, जो आध्यात्मिक शक्ति का स्रोत है।कई तीर्थयात्रियों का मानना है कि कैलाश के आसपास अलौकिक ऊर्जा मौजूद है। कुछ लोग इसे “धरती का चक्र” या “एक्सिस मुंडी” कहते हैं, जो पृथ्वी और स्वर्ग को जोड़ता है। इसकी रहस्यमयी संरचना और प्राकृतिक आकृतियों ने भी इन मान्यताओं को बल दिया है।

पर्यटन

कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील हर साल हजारों तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। भारत, नेपाल और अन्य देशों से लोग यहां की यात्रा करते हैं। यह यात्रा कठिन और महंगी है, क्योंकि इसमें ऊंचाई, ठंड और लंबी दूरी की चुनौतियां शामिल हैं। भारत से तीर्थयात्रियों के लिए यह यात्रा आमतौर पर उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे या नेपाल के रास्ते शुरू होती है, जिसके लिए चीन सरकार से विशेष परमिट की आवश्यकता होती है।पर्यटन के लिए दारचेन आधार शिविर है, जहां से परिक्रमा शुरू होती है। मानसरोवर झील में स्नान और कैलाश की परिक्रमा मुख्य गतिविधियां हैं। हाल के वर्षों में, चीन सरकार ने इस क्षेत्र में बुनियादी ढांचे को बेहतर किया है, जैसे सड़कें और गेस्ट हाउस, जिससे यात्रा आसान हुई है। हालांकि, पर्यटकों की संख्या सीमित रखी जाती है ताकि क्षेत्र की पवित्रता और पर्यावरण सुरक्षित रहे।कैलाश की यात्रा न केवल धार्मिक, बल्कि साहसिक और प्रकृति प्रेमियों के लिए भी आकर्षक है। इसके शांत वातावरण, बर्फ से ढके पहाड़ और नीले आकाश का दृश्य इसे अविस्मरणीय बनाते हैं।

निष्कर्ष

कैलाश पर्वत एक ऐसा स्थल है जो प्रकृति, इतिहास और आध्यात्मिकता का अनूठा संगम है। इसकी स्थिति, भूगोल और धार्मिक महत्व इसे विश्व के सबसे रहस्यमयी और पवित्र स्थानों में से एक बनाते हैं। चढ़ाई के असफल प्रयासों और पर्यटन की बढ़ती लोकप्रियता के बावजूद, यह अपनी मूल पहचान और शांति को बनाए हुए है। कैलाश न केवल एक पर्वत है, बल्कि लाखों लोगों की आस्था और प्रेरणा का प्रतीक है।

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