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पृथ्वी की उत्पत्ति कैसे हुई : एक विस्तृत वैज्ञानिक विवरण

पृथ्वी की उत्पत्ति: एक विस्तृत वैज्ञानिक विवरण

ब्रह्मांडीय शुरुआत: बिग बैंग से सौर नीहारिका तक

पृथ्वी की उत्पत्ति की कहानी इसके स्वयं से शुरू नहीं होती, बल्कि पूरे ब्रह्मांड से शुरू होती है। लगभग 13.8 अरब साल पहले, एक घटना जिसे “बिग बैंग” कहा जाता है, ने सब कुछ शुरू किया— अंतरिक्ष, समय, पदार्थ और ऊर्जा। शुरू में, ब्रह्मांड उप-परमाणविक कणों का एक बेहद गर्म और सघन मिश्रण था। पहले सेकंड के भीतर, यह फैलने और ठंडा होने लगा, जिससे प्रोटॉन और न्यूट्रॉन बनने लगे। कुछ मिनटों में, ये हाइड्रोजन (लगभग 75%) और हीलियम (लगभग 25%) जैसे हल्के तत्वों के नाभिक में बदल गए, जिसमें लिथियम की थोड़ी मात्रा भी थी।

लाखों साल तक, ब्रह्मांड एक अंधेरे, फैलते हुए गैस और विकिरण के बादल के रूप में रहा। बिग बैंग के लगभग 3,80,000 साल बाद, यह इतना ठंडा हो गया कि इलेक्ट्रॉन नाभिकों के साथ मिलकर तटस्थ परमाणु बना सके। इससे प्रकाश मुक्त होकर यात्रा करने लगा, जिसे हम आज “कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड” के रूप में देखते हैं—ब्रह्मांड में सबसे पुरानी रोशनी का एक चित्र।

करोड़ों सालों में, गुरुत्वाकर्षण ने इस प्रारंभिक गैस को आकार देना शुरू किया। ब्रह्मांड में छोटी-छोटी सघनता बढ़ने लगी और हाइड्रोजन और हीलियम के विशाल बादल बन गए। बिग बैंग के लगभग 10 करोड़ साल बाद, इन बादलों ने अपने वजन से संकुचन शुरू किया और पहले तारे बन गए। ये विशाल, अल्पकालिक तारे अपने केंद्र में हाइड्रोजन को हीलियम में बदलते थे और कार्बन, ऑक्सीजन, और नाइट्रोजन जैसे भारी तत्व बनाते थे। जब इनका ईंधन खत्म हुआ, तो ये “सुपरनोवा” के रूप में विस्फोटित हो गए, इन तत्वों को अंतरिक्ष में बिखेरते हुए, जो ग्रहों के निर्माण के लिए बीज बन गए।

तारों की कई पीढ़ियाँ जीवित रहीं और मर गईं, जिससे अंतरतारकीय माध्यम में धातुएँ (खगोलीय भाषा में, हीलियम से भारी कोई भी तत्व) समृद्ध हुईं। लगभग 4.6 अरब साल पहले, मिल्की वे गैलेक्सी के एक सर्पिल भुजा में, एक विशेष “मॉलिक्यूलर क्लाउड”—गैस और धूल का ठंडा, सघन मिश्रण—पृथ्वी के निर्माण का मंच तैयार किया। यह बादल, जो शायद दर्जनों प्रकाश-वर्ष तक फैला था, में प्राचीन तारों के अवशेष थे: हाइड्रोजन, हीलियम, और सिलिकन, लोहा, और मैग्नीशियम जैसे भारी तत्वों की थोड़ी मात्रा।

किसी कारण से—संभवतः पास के सुपरनोवा के झटके से—यह बादल संकुचित होने लगा। संकुचन के साथ, यह एक घूमती हुई डिस्क में चपटा हो गया, जिसे “सौर नीहारिका” (Solar Nebula) कहा जाता है, जो लगभग 100 खगोलीय इकाइयों (AU) तक फैली थी (1 AU पृथ्वी से सूर्य की दूरी है, लगभग 15 करोड़ किलोमीटर)। केंद्र में, गुरुत्वाकर्षण ने अधिकांश पदार्थ को अंदर खींचा, इसे लाखों डिग्री तक गर्म किया और परमाणु संलयन शुरू करके सूर्य बना। बाकी डिस्क, जो नवजात सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा रही थी, सौर मंडल के ग्रहों का जन्मस्थान बन गई, जिसमें पृथ्वी भी शामिल थी।


संचय (Accretion): प्रोटोप्लैनेट का निर्माण

सौर नीहारिका के भीतर, पृथ्वी का निर्माण “संचय” (Accretion) नामक प्रक्रिया से हुआ। यह डिस्क एकसमान नहीं थी—इसमें गैस, सूक्ष्म धूल कण, और बर्फ के कण थे, और सूर्य से दूरी के साथ तापमान कम होता गया। केंद्र के पास, जहाँ सूर्य जल रहा था, केवल सिलिकेट और धातुओं जैसे चट्टानी पदार्थ गर्मी सहन कर सकते थे। “फ्रॉस्ट लाइन” (लगभग 3-4 AU) से परे, पानी, अमोनिया, और मीथेन जैसे अस्थिर यौगिक बर्फ में जम गए।

पृथ्वी के क्षेत्र में, सूर्य से लगभग 1 AU की दूरी पर, सूक्ष्म धूल कण—माइक्रोमीटर आकार के—एक-दूसरे से टकराने और चिपकने लगे, जो स्थिर वैद्युत बलों या कमजोर रासायनिक बंधनों से जुड़े थे। हजारों सालों में, ये मिलीमीटर और सेंटीमीटर आकार के कंकड़ में बदल गए। यह प्रारंभिक चरण, जिसे “डस्ट कोएगुलेशन” कहा जाता है, अराजक था, जिसमें कण नीहारिका की गैस में उथल-पुथल भरे भँवरों में घूम रहे थे।

जैसे-जैसे ये ढेर बड़े हुए, गुरुत्वाकर्षण ने कमान संभाली। नीहारिका के संकुचन के लगभग 10,000 से 1,00,000 साल बाद, ये किलोमीटर आकार के “प्लैनेटेसिमल्स” बन गए—चट्टानी या धात्विक पिंड जिनमें और पदार्थ को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त द्रव्यमान था। कंप्यूटर सिमुलेशन बताते हैं कि यह विकास सुचारू नहीं था; टक्करों ने अक्सर छोटे पिंडों को तोड़ दिया, लेकिन बचे हुए टुकड़े बड़े पिंडों में समा गए, जिससे “विजेता सब ले जाता है” की स्थिति बनी।

अगले कुछ लाख सालों में, प्लैनेटेसिमल्स टकराए और मिल गए, जिससे “प्रोटोप्लैनेट्स” बने—दसियों से सैकड़ों किलोमीटर तक के पिंड। पृथ्वी इनमें से एक के रूप में उभरी, धीरे-धीरे गुरुत्वाकर्षण से और पदार्थ खींचती गई। प्रोटोप्लैनेट चरण में “रनअवे ग्रोथ” हुई, जहाँ बड़े पिंड तेजी से बढ़े क्योंकि उनका मजबूत गुरुत्वाकर्षण और सामग्री को कुशलता से खींचता था। सौर नीहारिका के बनने के लगभग 1 करोड़ साल बाद, पृथ्वी अपने वर्तमान आकार के एक बड़े हिस्से तक पहुँच गई थी, हालाँकि यह अभी भी एक पिघला हुआ, अविभेदित द्रव्यमान था।

यह प्रारंभिक पृथ्वी अकेली नहीं थी। युवा सौर मंडल एक भीड़भाड़ वाला स्थान था, जिसमें दर्जनों प्रोटोप्लैनेट्स सूर्य की परिक्रमा कर रहे थे। उनके गुरुत्वाकर्षण अंतर्क्रियाओं ने सिस्टम को हिलाकर रख दिया, जिससे और टक्करें हुईं। कुछ प्रोटोप्लैनेट्स अंतरतारकीय अंतरिक्ष में निकाल दिए गए, जबकि अन्य विलय हो गए या बढ़ते ग्रहों में समा गए। पृथ्वी की स्थिति, सूर्य से लगभग 1 AU पर, इसे “टेरेस्ट्रियल जोन” में रखती थी, जहाँ चट्टानी ग्रह बन सकते थे, जो बृहस्पति जैसे गैस दिग्गजों से अलग थे जो दूर बन रहे थे।


विशाल टक्कर: चंद्रमा का जन्म

पृथ्वी के निर्माण में सबसे नाटकीय घटनाओं में से एक सौर नीहारिका के संकुचन के लगभग 5 से 10 करोड़ साल बाद हुई: वह टक्कर जिसने चंद्रमा को जन्म दिया। इस बिंदु पर, पृथ्वी एक प्रोटोप्लैनेट थी जो अपने अंतिम द्रव्यमान के करीब पहुँच रही थी, शायद आज के 80-90% तक। एक और प्रोटोप्लैनेट, मंगल के आकार का (पृथ्वी के वर्तमान द्रव्यमान का लगभग 10%), जिसे “थिया” नाम दिया गया, एक भाग्यशाली कक्षा में प्रवेश कर गया।

सिमुलेशन बताते हैं कि थिया ने पृथ्वी से सीधे टक्कर नहीं की, बल्कि एक कोण पर टकराई, लगभग 4 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से। यह टक्कर विनाशकारी थी। थिया का लोहे का कोर पृथ्वी में घुस गया, इसके अपने कोर के साथ मिल गया, जबकि इसका मेंटल और पृथ्वी की बाहरी परतें वाष्पीकृत हो गईं और अंतरिक्ष में उछल गईं। यह मलबा—लाखों टन पिघली हुई चट्टान—पृथ्वी के चारों ओर एक छल्ले में बदल गया।

कुछ घंटों से दिनों के भीतर, यह मलबा एकत्र होने लगा। गुरुत्वाकर्षण ने इसे ढेर में खींचा, जो टकराए और चिपक गए, जिससे कक्षा में एक छोटा, पिघला हुआ पिंड बना। अगले कुछ हज़ार सालों में, यह पिंड चंद्रमा में बढ़ गया, जो शुरू में पृथ्वी से बहुत करीब परिक्रमा कर रहा था (शायद 20,000-30,000 किलोमीटर दूर, आज के 3,84,000 किलोमीटर की तुलना में)। पृथ्वी और चंद्रमा के बीच ज्वारीय बलों ने इसे धीरे-धीरे बाहर धकेला, एक प्रक्रिया जो आज भी जारी है।

इस टक्कर का पृथ्वी पर गहरा प्रभाव पड़ा। इसने ग्रह की धुरी को झुका दिया, जिससे हमें आज का 23.5 डिग्री का झुकाव और मौसम मिले। इसने पृथ्वी की सतह को भी पिघला दिया, जिससे सैकड़ों किलोमीटर गहरा “मैग्मा महासागर” बना। इस गर्मी ने विभेदन को बढ़ावा दिया: लोहा जैसे भारी तत्व कोर में डूब गए, जबकि हल्के सिलिकेट मेंटल और क्रस्ट बनाने के लिए ऊपर उठे। चंद्रमा बनाने वाली टक्कर ने इस तरह पृथ्वी की संरचना को आकार दिया और इसे सौर मंडल के ग्रहों में एक अद्वितीय रास्ते पर डाल दिया।


ठंडक और सतह का जन्म

चंद्रमा के निर्माण के बाद, पृथ्वी एक नरक जैसी दुनिया थी—पिघली हुई चट्टान का एक चमकता हुआ गोला, जिसके चारों ओर वाष्पीकृत सिलिकेट का पतला वातावरण था। लाखों सालों में, यह ठंडा होने लगा। गर्मी अंतरिक्ष में विकिरित हुई, और सतह एक पतली परत में जम गई, हालाँकि ज्वालामुखी गतिविधि और प्रभावों ने इसे अस्थिर रखा। अंदरूनी हिस्सा गर्म रहा, जिसमें मेंटल में संवहन ने टेक्टोनिक प्रक्रियाओं को शुरू किया जो आज भी जारी हैं।

प्रारंभिक वातावरण संभवतः सौर नीहारिका से हाइड्रोजन और हीलियम का मिश्रण था, लेकिन यह सूर्य के तीव्र विकिरण और उस समय पृथ्वी के कमजोर गुरुत्वाकर्षण से छीन लिया गया। एक द्वितीयक वातावरण तब बना जब ग्रह ठंडा हुआ, जो ज्वालामुखी गैसों से निकला। विस्फोटों ने पानी का वाष्प, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, और सल्फर यौगिकों को मेंटल से बाहर निकाला। ये गैसें जमा हुईं, जिससे एक मोटा, जहरीला आवरण बना—अभी तक ऑक्सीजन नहीं थी, क्योंकि मुक्त ऑक्सीजन जीवन के अरबों साल बाद तक नहीं आएगी।

पानी पृथ्वी की रहने योग्यता के लिए एक महत्वपूर्ण घटक था, लेकिन इसकी उत्पत्ति पर बहस है। कुछ संभवतः सौर नीहारिका से आए, जो प्लैनेटेसिमल्स के भीतर खनिजों में फंसे थे। हालांकि, इसका अधिकांश हिस्सा बाद में आया होगा, जो पानी से समृद्ध क्षुद्रग्रहों और धूमकेतुओं द्वारा फ्रॉस्ट लाइन से परे से लाया गया। 4.4 से 4.1 अरब साल पहले, “लेट हेवी बॉम्बार्डमेंट” नामक अवधि के दौरान, अनगिनत प्रभावों ने पृथ्वी को पीटा, संभवतः महासागरों को भरने के लिए पर्याप्त पानी लाया।

जैसे ही सतह 100 डिग्री सेल्सियस से नीचे ठंडी हुई, पानी का वाष्प तरल में संघनित हुआ, निचले बेसिनों में जमा हो गया। लगभग 4.4 अरब साल पहले—पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में पाए गए सबसे पुराने खनिजों, जिरकॉन से साक्ष्य—पृथ्वी में एक ठोस क्रस्ट और तरल पानी था। ये जिरकॉन, 4.4 अरब साल पुराने छोटे क्रिस्टल, एक ऐसे ग्रह का सुझाव देते हैं जो पहले से ही पिघले हुए नरक से महासागरों और महाद्वीपों वाले विश्व में बदल रहा था, हालाँकि अभी भी प्रभावों से पीड़ित था।


हेडियन युग: पृथ्वी का आकार लेना

पृथ्वी का पहला भूवैज्ञानिक युग, हेडियन (4.54 से 4 अरब साल पहले), परिवर्तन का समय था। “हेडीज” (यूनानी अंडरवर्ल्ड) के नाम पर, यह ग्रह की कठोर परिस्थितियों को दर्शाता है: एक पतली, अस्थिर क्रस्ट, बार-बार ज्वालामुखी विस्फोट, और उल्कापिंडों की बौछार। फिर भी, इसने रहने योग्यता की नींव रखी।

इस समय के दौरान कोर, मेंटल, और क्रस्ट पूरी तरह से अलग हो गए। कोर, ज्यादातर लोहा और निकल से बना, अपने डायनमो प्रभाव से पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है, जो वातावरण को सौर हवा से बचाता है। मेंटल, अर्ध-पिघली चट्टान की मोटी परत, प्लेट टेक्टोनिक्स को चलाती है—जो पृथ्वी को चट्टानी ग्रहों में अद्वितीय बनाती है। क्रस्ट, शुरू में बेसाल्टिक, ग्रेनाइट-समृद्ध महाद्वीपीय टुकड़ों को बनाने लगी, हालाँकि सच्चे महाद्वीप बाद में उभरे।

हेडियन के अंत तक, लगभग 4 अरब साल पहले, पृथ्वी में महासागर, एक स्थिर क्रस्ट, और नाइट्रोजन-कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण था। यह मंच आर्कियन युग के लिए तैयार था, जब जीवन उभरा—शायद 3.8 अरब साल पहले तक—हालाँकि वह एक अलग कहानी है।


साक्ष्य और आधुनिक समझ

यह विवरण अनुमान नहीं है—यह दशकों के साक्ष्यों पर आधारित है। उल्कापिंडों और पृथ्वी की सबसे पुरानी चट्टानों की रेडियोमेट्रिक डेटिंग सौर मंडल की आयु 4.567 अरब साल बताती है। ओरायन नीहारिका में युवा तारों के चारों ओर प्रोटोप्लैनेटरी डिस्क के अवलोकन सौर नीहारिका की स्थितियों को प्रतिबिंबित करते हैं। अपोलो मिशनों से लाए गए चंद्र चट्टानें थिया प्रभाव के सिमुलेशन से मेल खाती हैं। और तत्वों की ब्रह्मांडीय प्रचुरता सुपरनोवा-चालित अंतरतारकीय माध्यम के समृद्धिकरण के साथ संरेखित होती है।

पृथ्वी का निर्माण एक धीमी, हिंसक, और असंभावित प्रक्रिया थी—गुरुत्वाकर्षण, गर्मी, और संयोग का एक ब्रह्मांडीय नृत्य। गैस के बादल से लेकर एक जीवंत ग्रह तक, आज हम जिस दुनिया में रहते हैं, उसे बनाने में सैकड़ों करोड़ साल लगे।

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