Definitions of Economics /अर्थशास्त्र की परिभाषाएँ

Economics शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों Oikos और Nomos से बना है, जिसमें  Oikos का अभिप्राय घर या घर की प्रॉपर्टी से है तथा Nomos से अभिप्राय प्रबंधन से है. अत: अर्थशास्त्र का अर्थ घर या घर के धन के प्रबंधन से है. 
विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र की अलग अलग परिभाषाएँ दी हैं, अध्ययन की सरलता की दृष्टि से इन परिभाषाओं को निम्नलिखित भागों में बांटा जा सकता है :


धन संबंधी परिभाषा

  • एडम स्मिथ (Adam Smith) के अनुसार : “अर्थशास्त्र राष्ट्रों के धन के स्वभाव और कारणों की खोज है
  • वॉकर (Walker) के अनुसार: “अर्थशास्त्र ज्ञान के उस भाग का नाम है जिसका संबंध धन से है“।
  • जे. बी. से. (J. B. Say) के अनुसार: “अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो धन का अध्ययन करता है“।

आलोचना:

धन सम्बन्धी परिभाषाओं के अनुसार अर्थशास्त्र के अध्ययन का मुख्य विषय धन है. इन परिभाषाओं की निम्नलिखित कारणों से आलोचना की गयी है:

  • इन परिभाषाओं में धन पर आवश्यकता से अधिक बल दिया गया है, जो सही नहीं है। धन केवल मानव की आवश्यकताओं को पूर्ण करने का साधन मात्र है।
  • इन परिभाषाओं में दुर्लभता की समस्या, आर्थिक कल्याण की धारणा, आर्थिक विकास की धारणा आदि के बारे में कुछ नहीं बताया गया है।
  • ये परिभाषाएँ अर्थशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र को बहुत छोटा बनाती हैं इसलिए ये परिभाषाएँ अर्थशास्त्र की संकुचित परिभाषाएँ हैं।


भौतिक कल्याण संबंधी परिभाषा

  • मार्शल (Marshall) के अनुसार “र्थशास्त्र जीवन के सामान्य व्यवसाय के सम्बन्ध में मानवजाति का अध्ययन है। यह मानव के उन कार्यों का अध्ययन करता है जिनका सम्बन्ध कल्याण प्रदान करने वाले भौतिक साधनों की प्राप्ति से है।”
  • पीगू के अनुसार: “अर्थशास्त्र आर्थिक कल्याण का अध्ययन है और आर्थिक कल्याण के उस भाग तक सीमित रहता है जिसको प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से मुद्रा के मापदंड से संबंधित किया जा सके।”

मार्शल (Marshall) की भौतिक कल्याण सम्बन्धी परिभाषा के अनुसार:

  • मार्शल ने अपनी परिभाषा में धन की तुलना में मनुष्य को अधिक महत्व दिया है। मार्शल के अनुसार धन से ज्यादा महत्वपूर्ण मानव का कल्याण है।
  • मार्शल के अनुसार अर्थशास्त्र में सामाजिक और सामान्य व्यक्तियों द्वारा की जाने वाली आर्थिक क्रियाओं का ही अध्ययन किया जाता है। साधु, सन्यासी और असामान्य मनुष्यों की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन नहीं किया जाता।
  • मार्शल के अनुसार अर्थशास्त्र में मानव जीवन के सामान्य व्यवसाय का अध्ययन किया जाता है। यहाँ पर “मानव जीवन के सामान्य व्यवसाय” से अभिप्राय मनुष्य द्वारा प्रतिदिन की जाने वाली क्रियाएँ जैसे उत्पादन, उपभोग, विनिमय, वितरण आदि से है।
  • मार्शल के अनुसार अर्थशास्त्र का मुख्य उद्देश्य मानव के भौतिक कल्याण में वृद्धि करना है।

आलोचना:

  • मार्शल ने अर्थशास्त्र के अध्ययन का उद्देश्य भौतिक साधनों की प्राप्ति बताया है, परंतु अभौतिक साधन जैसे डॉक्टर, वकील, शिक्षक, इंजीनियर आदि की सेवाओं का अध्ययन भी अर्थशास्त्र में किया जाता है।
  • अर्थशास्त्र के नियम केवल सामाजिक व्यक्तियों पर ही लागू नहीं होते, अपितु ये नियम समाज से बाहर रहने वाले व्यक्तियों पर भी लागू होते हैं (जैसे घटती सीमान्त उपयोगिता का नियम), इसलिए अर्थशास्त्र को केवल सामाजिक विज्ञान न मानकर मानव विज्ञान मानना ज्यादा उचित है।
  • अर्थशास्त्र के अध्ययन का उद्देश्य किसी क्रिया की अच्छाई या बुराई को जानना नहीं है, इसलिए यह आवश्यक नहीं है कि आर्थिक क्रियाएँ सदैव मनुष्य के कल्याण को बढ़ाएँ, जबकि इन परिभाषाओं के अनुसार अर्थशास्त्र का उद्देश्य मानव कल्याण को बढ़ाना है। इसलिए, अर्थशास्त्र पूर्णत: आदर्शात्मक विज्ञान न होकर एक वास्तविक विज्ञान है।
  • भौतिक कल्याण संबंधी परिभाषाओं में अभौतिक साधनों के अध्ययन की अवहेलना की गई है।


दुर्लभता संबंधी परिभाषा

रॉबिन्स (Robbins) के अनुसार “अर्थशास्त्र मानव के उस व्यवहार का अध्ययन करता है, जो वे, वैकल्पिक उपयोगों वाले सीमित साधनों की प्राप्ति और उपयोग के लिए करते हैं।”

  • रॉबिन्स की दुर्लभता सम्बन्धी परिभाषा अर्थशास्त्र की मुख्य समस्या अर्थात चुनाव की समस्या पर जोर देती है. अपनी असीमित आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वैकल्पिक उपयोगों वाले सीमित साधनों में से हमें चुनाव करना पड़ता है कि हम किन साधनों का उपयोग करें।
  • मनुष्य की आवश्यकताएँ असीमित हैं।
  • आवश्यकताओं को पूरा करने वाले उपलब्ध साधन सीमित हैं।
  • इन सीमित साधनों के भी वैकल्पिक प्रयोग हो सकते हैं जिसके कारण साधनों की सीमितता और बढ़ जाती है।
  • मनुष्य को अपनी आवश्यकताओं के महत्व के हिसाब से आवश्यकताओं की प्राथमिकताएँ निर्धारित करनी होती हैं और सीमित साधनों में से आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए चुनाव करना पड़ता है।

आलोचना:

  • अर्थशास्त्र को सामाजिक विज्ञान न मानकर मानव विज्ञान मानने से अर्थशास्त्र के अध्ययन का क्षेत्र बहुत विस्तृत हो जाता है और जिसके कारण समस्याओं के विश्लेषण और समाधान और भी जटिल हो जाते हैं।
  • यदि समाज से बाहर रहने वाले मानव समूह की क्रियाएँ अन्य किसी मानव समूह की क्रियाओं को प्रभावित नहीं करती तो ऐसे मानव समूहों की क्रियाओं का अर्थशास्त्र में अध्ययन महत्वहीन है।
  • अर्थशास्त्र के अध्ययन की एक प्रमुख धारणा आर्थिक विकास की अवहेलना की गई है।
  • आर्थिक समस्या उत्पन्न होने का कारण सदैव दुर्लभता ही नहीं होता, कभी-कभी अधिक उत्पादन करने के कारण भी आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं।


विकास केन्द्रित परिभाषा

  • सैमुएलसन (Samuelson) के अनुसार “अर्थशास्त्र इस बात का अध्ययन करता है कि मानव और समाज, धन का प्रयोग किए या बिना किए, उत्पादन के सीमित साधनों (जिनके वैकल्पिक प्रयोग होते हैं ), का विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन के लिए किस प्रकार चुनाव करते हैं और किस प्रकार इस बात का चुनाव करते हैं कि इन उत्पादित वस्तुओं का वर्तमान और भविष्य में, उपभोग के लिए, लोगों और समाज के समूहों के बीच वितरण किया जाए, अर्थशास्त्र साधनों के बंटवारे को आदर्श बनाने के लिए लागतों और लाभों का विश्लेषण करता है”.
  • हिक्स के अनुसार “अर्थशास्त्र में मानव व्यवहार के विशिष्ट पहलुओं का अध्ययन किया जाता है। अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो व्यवसायिक कार्यकलापों का अध्ययन करता है।”

सैमुएलसन की परिभाषा के अनुसार:

  • सैमुएलसन की विकास आधारित परिभाषा मार्शल तथा रॉबिंस दोनों की परिभाषाओं का मिश्रण है।
  • सैमुएलसन की परिभाषा एक गतिमान परिभाषा है।
  • सैमुएलसन की परिभाषा के अनुसार साधनों के आवंटन की समस्या एक महत्वपूर्ण समस्या है।
  • सैमुएलसन की परिभाषा में सीमित साधनों में से आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए चुनाव करने को अधिक महत्व दिया गया है।

आधुनिक परिभाषा

  • A. C. Dhas के अनुसार “अर्थशास्त्र दुर्लभता और आधिक्य के स्तिथियों में अपने लाभों को अधिकतम और असीमित आवश्यकताओं को वर्तमान और भविष्य में पूरा करने के लिए, व्यक्तियों, संस्थाओं, समाजों, राष्ट्रों और विश्व द्वारा किये गए चुनावों का अध्ययन है।”

इन परिभाषाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि अर्थशास्त्र के अंतर्गत मुख्यतः निम्नलिखित का अध्ययन किया जाता है:

आर्थिक क्रियाएँ :
सभी मनुष्य अपने दैनिक जीवन में बहुत सारी क्रियाएँ करते हैं जिनके अंतर्गत धन का लेनदेन किया जाता है, वह सभी क्रियाएँ आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं। अर्थशास्त्र में केवल आर्थिक क्रियाओं का ही अध्ययन किया जाता है, गैर-आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन नहीं किया जाता.

असीमित आवश्यकताएँ, सीमित संसाधन :
हम सभी की आवश्यकताएँ सदैव असीमित होती हैं हमारी आवश्यकताओं को कभी भी पूर्ण रूप से संतुष्ट नहीं किया जा सकता लेकिन इन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए हमारे पास जो संसाधन उपलब्ध हैं उनकी पूर्ति सीमित होती है।

चुनाव की समस्या :
जब संसाधनों की पूर्ति सीमित होने के कारण सभी व्यक्तियों की सारी आवश्यकताएँ एक साथ पूर्ण नहीं की जा सकती, तब चुनाव की समस्या उत्पन्न होती है। हमें हमेशा सीमित संसाधनों में से यह चुनाव करना पड़ता है कि हम कौन से संसाधनों का प्रयोग करें जिससे हमारी अधिकतम आवश्यकताएँ संतुष्ट हो सकें।

मानव का आर्थिक कल्याण:
जब सीमित साधनों से चुनाव करके मनुष्य अपनी अधिकतम आवश्यकताओं को संतुष्ट करने में सक्षम होता है तो हम कहते हैं कि उसका आर्थिक कल्याण हो रहा है। अर्थशास्त्र का उद्देश्य सभी मनुष्यों के आर्थिक कल्याण को बढ़ाना और अधिकतम करना है।

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